Monday, June 27, 2011

महंगाई और सरकार

महंगाई और सरकार

बढते भावों को रोकना, महंगाई के विरुद्ध कदम उठाना, चिन्तित होना, चिन्ता को जब मौका मिले व्यक्त कर देना आदि राष्ट्रीय दायित्व है, जिन्हें हमारे बडे नेतागण, मझले नेतागण, बडे अफ़सरगण, अपेक्षाकृत कम बडे अफ़सरगण निभाते है और जब जैसा मौका लगे उस दिशा में ज़रुरी कदम उठाते हैं |

पहला कदम तो यह कि उन्हें पता होता है कि महंगाई बढने वाली है और आम लोगों का जीना मुहाल होगा | ऐसे में वे खामोश रहते हैं | सबसे भली चुप स्वर्णिम नियम का पालन करते हैं | चूँकि जिम्मेदार लोग हैं | अतः उनका ऐसा करना स्वाभाविक हैं | लोगों मैं अफ़वाहे फ़ैलती हैं | निराशा बढ़ती हैं | घबराहट होती है | इसलिए चुप रहना ज़रुरी है | कुछ ऐसे लोगों को जो स्टॉक करने क्षमता रखते हैं , उन्हें वे चुपके से बता भी देते हैं कि इस वस्तु का स्टॉक करना ठीक होगा, क्योंकि भविष्य में भाव बढने वाले हैं | पर हर किसी को बताने से फ़ायदा भी क्या?

उसका दूसरा कदम होता है चिन्तित होना | आपने अक्सर सुना और पढ़ा और सुना होगा कि सरकार या खाद्य विभाग के मन्त्री या अफ़सर बढ़ती महंगाई की समस्या को ले कर चिन्तित हैं | यह जिम्मेदारी का काम साल भर चलता रहता है | अब जैसे की चिन्ता की प्रकृति होती है, वह व्यक्त हो जाती है | खासकर अखबार के सवांददाताओं को देख वह बड़ी जल्दी व्यक्त होती है | सारे देश को जब पता चलता है कि सरकार चिन्तित है, तो उन्हें यह भी पता चल जाता है कि महंगाई और बढ़ने वाली है | वे दुःखी होते हैं | वे यही हो सकते हैं | वे महंगाई कम नहीं कर सकते और आटा-दाल खरीदे बिना रह नहीं सकते | उन्हें सांत्वना केवल इस सूचना से मिलती है कि सरकार भी चिन्तित है |

तीसरी महत्वपूर्ण बात है कि कड़ा कदम उठाना | यह एक सपना है जो सरकार को आता है और उसकी परणिति शेखचिल्ली जैसी होती है | मतलब कड़ा कदम उठाने के चक्कर में सरकार स्वयं कड़ी हो जाती है, कदम कड़ा नहीं होता, व्यापारियों को धमकी दी जाती है और भारतीय व्यापारियों की यह खूबी है कि वे सरकारी धमकियों को माइडं नहीं करते | नेताओं को यह बात अच्छी नहीं लगती कि महंगाई बढ़ाकर व्यापारी ज़्यादा कमाएँ | फ़ौरन वह व्यापारियों पर टूट पड़ती है और अपने राजनैतिक दल के लिये चंदा लिए बगैर नहीं हटती | इस तरह व्यापारियों की जेब थोड़ी हल्की हो जाती है | और इससे कड़ा कदम व्यापारियों के खिलाफ़ और क्या उठाया जा सकता है कि उनसे चन्दा ले कर उनकी जेबें थोड़ी हल्की कर दी जाए |

इस बीच बढ़ी महंगाई और बढ़ जाती है | चन्दा दे देने के बाद व्यापारियों में आत्मबल आ जाता है| इस बीच लोग भी शोर करने लगते हैं | हो-हल्ला मचने लगता है और विपक्ष को सरकार के विरुद्ध जोरदार प्वाइंट मिल जाता है |

तब सरकार अपना अंतिम जोरदार उपाय करती है | वह महंगाई को रोक पाने में असमर्थता जाहिर कर देती है | यह शानदार कदम हर आलोचक को घायल और भूलुंठित कर देता है | सरकार साफ़ कहती है कि अभी एकाएक महंगाई रोकना उसके बस की बात नहीं है | वह कुछ नहीं कर सकती | महंगाई को एक राक्षसी स्वतंत्रता मिल जाती है | नगर निवासियों को चुनचुन कर खाने की और राजा कुछ भी करने से हाथ खड़े कर देता है जाहिर है वह अपनी गद्दी तो छोड़ नहीं सकता |

इस तरह सरकार वह आदर सम्मान अर्जित कर लेता है, जो उन शक्तिहीनों को प्राप्त होता है, जो स्वीकार कर लेते हैं कि हम शक्तिहीन हैं |

उसके बाद सरकार अन्तिम जोरदार कदम यह उठाती है कि वह स्वयं उसे महँगे भाव खरीदने लगती है, जिस भाव बाज़ार में निल रहा है |

-शरद जोशी-

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