Wednesday, August 19, 2009

होती अगर कबूल कोई इल्तजा हमारी,

इबादत के दीवाने आज हम भी होते;

मुहब्बत की होती हम से भी किसी ने अगर,

तो हर शख्स से नरम मिजाज़ हम भी होते।

ज़्यादा गंभीर होने का नहीं. थोडा बहुत चलेगा. ज़िन्दगी ऐसे ही है. कभी नम तो कभी सूखी, कभी गम तो कभी खुशी, कभी मिलना तो कभी जुदा होना. इसी लिए किसी ने कहा है

मेरे मरने पर तुम आंसू ना बहाना

मेरे मरने पर तुम आंसू ना बहाना

याद आए तो सीधे ऊपर चले आना

तभी किसी ने आवाज़ लगाई दोस्त कभी तो संजीदा हो जाया करो, अब ज़रा यह सुनो

दोस्तों को कहते सुना अक्सर

ज़िन्दा रहे तो फिर मिलेगें

मगर इस दिल ने महसूस किया है

पल पल मिलते रहे तो ज़िन्दा रहेगें

हम ने कहा यार ये तो ट्रकों वाली शायरी है. जनाब बुरा मान गये बोले तुम करो तो शायरी हम करें तो घसियारी. हमें हंसी आ गयी और हम पूंछ बैठे यार ये घसियारी क्या होती है? अब तो जनाब सुलग गये. बोले यार शर्म आती है तुम्हे अपना दोस्त कहने में. शायरी करते हो ये भी नहीं मालूम. हमने उनका मिजाज़ देखते हुए चर्चा शायरी तक ही सीमित रखने में भलाई समझी. हमने कहा फालतू बातें छोडो एक शेर सुनो.

ईरशाद

हम चौंक कर बोले कहां है?

वे झुझंलाके बोले अमां छोडो तुम नहीं समझोगे इसका मतलब. शेर सुनाओ.

हमने कहा अर्ज किया है

मच्छर ने जो काटा दिल में ज़ुनून था

खुजली इतनी हुई दिल बेसुकून था

पकडा तो जाने दिया ये सोच कर

साले की रगों में अपना ही खून था

शर्म करो यार कुछ तो शर्म करो. शायरी को यूं तो बदनाम मत करो वे चिड कर बोले. हमने कहा यार आप तो एसे बातें कर रहे हैं जैसे शायरी आप के अब्बा की बपौती हो. हम भी सीख रहे हैं. धीरे धीरे सीख जायेगें. अब्बा की बात सुन कर वे भडक गये. बोले शायरी तो हमारे खून में ही है. हमारे वालिद के चचाजान गालिब साहब के पिछ्वाडे की गली में ही रहते थे. अब आप को तो जनाब गालिब के बारे में भी नहीं मालूम होगा. खैर छोडिये. शेर सुनिये.

सलीका हो अगर भीगी हुई आंखों को पढने का

तो बहते आंसू भी अक्सर बात करते हैं

हमने कहा ये भी कोइ तुकबंदी है. रोते हुए शेर सुना कर लोगों को एमोशनल कर वाहवाही लूटना ही आपका हुनर होगा हमारा नहीं. हमने कहा एक लाईन सुनिये

तेरी ज़ुल्फ है कि घना अंधेरा

तेरी ज़ुल्फ है कि घना अंधेरा

कटवा दे बाल और कर दे सवेरा

जनाब अपने कानों पर हाथ रख कर अपनी शायरी की जान बख्शने की गुज़ारिश करने लगे. हम बोले यार क्यों हर वख्त इतने संजीदा रहते हो शायरी तो लोगों को देख कर की जाती है. हमने कहा तो अंत में एक और शेर हो जाये ना जाने फिर कब मुलाकात हो. वे खुश हो गये कि चलो जान छूटी इस नामुराद से, बोले तो एक और सुनो

हर मुलाकात उनसे अधूरी सी रही

हर खुशी में कुछ कमी सी रही

ख्वाब क्या देखा हमने तुम्हारा

अब तो नींद की आंखों से दुशमनी सी रही.